प्रेम: चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी एवं रोगी के लिए
रोग से जूझ रहे किसी व्यक्ति को जब यह पता चल जाए कि उसके रोग के लिए दवा भी उपलब्ध है और चिकित्सक भी तो फिर उसके मन में आशा का ऐसा संचार होता है कि लगता है जैसे रोग की विदाई अब निश्चित है। रोग हमें तरह-तरह से प्रभावित करते हैं: वे हमारा संघर्ष बढ़ाते हैं, वे हमारे मन पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं और इस प्रकार वे हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से शिथिल कर देते हैं। किसी रोगी के लिए दवा और चिकित्सक दोनों का अपना-अपना महत्व है। दवा और चिकित्सक तभी सफल सिद्ध होते हैं जब वे दोनों ठीक से अपना-अपना काम करने के लिए जाने जाएँ, यही कारण है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा इस परिभाषा से दूर रहने वाला व्यक्ति भी जब अस्वस्थ होता है तो एक अच्छा चिकित्सक और अच्छी दवा ही खोजता है।
जीवन के भिन्न-भिन्न पड़ावों पर सामान्यतः हम सभी अनेकों बार अस्वस्थ होते हैं और फिर स्वस्थ भी हो पाते हैं, रोगी से निरोगी हो जाने तक की इस बारम्बारता में, बार-बार होने वाली इस यात्रा में हमें हमारे अपनों का हमारे प्रति प्रेम का प्रत्यक्ष अनुभव हो जाता है, रोग की विषम परिस्थिति में जब हमारी आशा भी हमें दुर्बल लगने लगती है तो हमारे आस-पास के भले लोग हमें आशावान भी बनाते हैं और तरह-तरह से सहयोग भी करते हैं, ऐसी परिस्थिति में हमारे पास जीवन के इस सच को समझ लेने का पर्याप्त समय होता है कि जिस जीवन की भागम-भाग में हम सम्बन्धों की परवाह तक करना भूल जाते हैं वही जीवन समय आने पर हमें यह पाठ सिखा देता है कि जीवन में प्रत्येक वस्तु या सम्बन्ध का महत्व निश्चित है, प्रेम को भले ही हम उतना महत्व न दें लेकिन हमारा जीवन उसके महत्व को प्रकट कर ही देता है। प्रेममय जीवन में आइए हम प्रेम को यथार्थ रूप में जानें, प्रेम को जिएँ, प्रेम में झूमें, हम प्रेम में डूबें
अपने जीवन के अनुभवों से, थोड़े प्रयासों और संतों की कृपा के प्रसाद स्वरूप, प्रेम के सम्बन्ध में मुझ अल्पज्ञानी ने जो कुछ भी जाना है, उसे मैंने अभ्यास के लिए दो काव्यात्मक पुस्तकों “प्रेम सारावली”एवं “मैं प्रेम हूँ”के रूप में संकलित कर लिया है, मेरी बातों का आधार यही दो पुस्तकें हैं
प्रसंग-1 से लेकर प्रसंग-4 तक हमने यह जान लिया है कि प्रेम क्या होता है, प्रेमी कैसा होता है, प्रेम का क्या महत्व है, प्रेम की कौन-कौन सी अवस्थाएँ होती हैं, और यह कि हमारे जीवन के लक्ष्यों में प्रेम का क्या स्थान है। इस प्रसंग में हम उस परिस्थिति में प्रेम के महत्व पर विचार करेंगे जो हमारे स्वयं के और हमारे अपनों के अस्वस्थ हो जाने पर प्रकट होती है। यह प्रसंग चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी एवं रोगी के लिए समर्पित है
चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को सामान्यतः इस क्षेत्र में कदम रखते ही इस बात का अनुभव होने लगता है कि चिकित्सा का क्षेत्र व्यक्ति के व्यक्ति से जुड़ाव का व्यावहारिक क्षेत्र है। भले ही इस क्षेत्र को उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र इसलिए चुना हो कि ये उन्हें सुविधा-सम्पन्न एवं सम्मानित जीवन दे सकेगा साथ ही वे रोगियों की सेवा करके समाज सेवा का कार्य भी कर सकेंगे। चिकित्सा का कार्यक्षेत्र उन्हें इस बात का प्रतिदिन अनुभव देता है कि इसमें जितनी आवश्यकता सही ज्ञान, विधि और तकनीक की है उतनी ही आवश्यकता रोगी को यह आशा देने वाले व्यवहार की भी है कि वह शीघ्र ही स्वस्थ हो पाएगा।
सामान्यतः चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मी इस बात को भली प्रकार समझते हैं कि रोगी के रोग की गंभीरता को देखते हुए दो बातों का विशेष ध्यान रखना होता है: पहली यह कि रोगी की मानसिक स्थिति को किसी प्रकार का नकारात्मक धक्का ना लगे क्योंकि निराशा रोगी को भीतर तक तोड़ देती है और फिर उसके ठीक होने के लिए आवश्यक उसी की अपनी संकल्प शक्ति बुरी तरह प्रभावित हो जाती है, और दूसरी बात यह सुनिश्चित करना कि रोगमुक्त होने के लिए रोगी दवा को निर्धारित समय पर ले एवं इस सम्बन्ध में बताए गए निर्देशों का पालन अवश्य करे।
इस कार्यक्षेत्र से जुड़े होने के कारण मेरी आशा शक्ति मुझसे कहती है कि यदि हमने अपने पूर्वजों की सीखों को सहेज कर रखा तो अवश्य ही वह दिन आएगा जब भारत की चिकित्सा पद्धति का गौरव गान पूरा विश्व गाएगा और सीखेगा कि भारत के चिकित्सालय सेवा और प्रेम के वे पवित्र स्थल हैं जिनमें निराशा का प्रवेश वर्जित है, जिनमें चिकित्सक सबसे बड़े सेवक हैं, जिनमें स्वास्थ्य कर्मी रोगी के और चिकित्सकों के सबसे बड़े सहायक हैं, जहाँ आकर रोगियों को अपने लिए चिंता करने की परिस्थिति ही न मिलती हो और जहाँ चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को यह भली प्रकार पता हो कि स्वस्थ हो गए लोगों से मिलने वाला प्रेम, आशीष और दुआएँ उनके लिए कितने मूल्यवान हैं!
लेकिन जीवन की परिस्थितियाँ सभी की परीक्षा लेती हैं, उनसे प्रत्येक प्राणी को गुजरना ही पड़ता है फिर चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी एवं रोगी इस तथ्य से कैसे अछूते रह सकते हैं? एक रोगी के लिए संवेदनशील समय वह होता है जब वह गंभीर रोग से पीड़ित हो कर शारीरिक और मानसिक रूप से विचलित होने लगता है। एक ओर से तो कष्टों की बौछार होती है, दूसरी ओर से आत्मीयता और आर्थिक सहायता की आस लगी रहती है, तीसरी ओर से ठीक हो पाने का प्रश्न चिन्ह खाए जाता है और चौथी ओर से इस बात का मलाल मन में पलने लगता है कि स्वयं की बीमारी पर मेरा और मेरे अपनों का इतना कुछ दाँव पर लग गया! जीवन के इस भावुक कर देने वाले चक्रव्यूह में फँसा रोगी तब आँसुओं के इस महत्व को जान जाता है कि आँखें कितनी सच्चाई से भीतर के दर्द को बाहर फेंक देती हैं और आँसू मन का कितना सारा बोझ अपने साथ बहा ले जाते हैं!
एक स्वास्थ्य कर्मी अपने कार्य में कितना कुशल है इसका पता तब चलता है जब वह दिन भर अनेकों रोगियों के निकट संपर्क में जा-जाकर उनकी शारीरिक और मानसिक मनोदशा को जानता-देखता है और सभी को उनकी मानसिक स्थिति के अनुसार कैसे सम्हाले इस ओर प्रयास करता है। एक स्वास्थ्य कर्मी ही वह व्यक्ति होता है जो रोगी और रोगी के सहायक-परिजनों की व्याकुलता के संपर्क में सबसे अधिक समय तक रहता है। वही वह व्यक्ति होता है जो प्रत्येक रोगी और उसके सहायक-परिजनों को चिकित्सक की कुशलता के बारे में बता कर आश्वस्त करता है और उनकी नकारात्मक बातों से जूझता है। वही वह व्यक्ति होता है जो प्रत्येक रोगी के सहायक-परिजनों को हर आवश्यक वस्तु की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। मेरी दृष्टि में तो स्वास्थ्य कर्मी चिकित्सालय की गौरव गाथा का वह अघोषित नायक है जो अपनी व्यस्तता की मस्ती में चूर होकर कभी इस बात की परवाह ही नहीं करता कि उसे माननीयों द्वारा नायक घोषित किया गया या नहीं।
एक चिकित्सक की कुशलता की परीक्षा तब होती है जब उसके पास रोगी गंभीर या अतिगम्भीर अवस्था में उपचार के लिए आता है और वह यह पाता है कि रोगी को उपचार से कोई लाभ नहीं हो रहा। यद्यपि चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य लाभ की आशा रोगी की आखिरी साँस तक जीवित रहती है फिर भी एक समय ऐसा आता है जब रोगी के परिजन भी यह मान बैठते हैं कि अब केवल प्रार्थना ही अंतिम विकल्प है, एक कुशल चिकित्सक ढलती हुई उम्मीदों के बीच भी अपना प्रयास नहीं छोड़ देता। ऐसी परिस्थिति में एक अच्छा चिकित्सक अपने प्रयासों को प्रार्थना से जोड़ कर देखता है और रोगी के ठीक हो जाने पर स्वयं को महापुरुष या देवता नहीं मान बैठता बल्कि सेवक ही मानता है। वह सेवा के इस अवसर और ईश्वरीय कृपा के संयोग का आभार करता है कि उसके प्रयास सफल हुए भले ही रोगी या रोगी के परिजन उसे भावुकता में देवता या भगवान कह दें। ‘चिकित्सा’ प्राणियों की ‘उपचार सेवा’ का ही दूसरा नाम है। एक अच्छा चिकित्सक अपने जीवन की सार्थकता को लेकर अपने मन में यह भाव रखता है कि यह उसका सौभाग्य है कि वह अपना जीवन रोगियों की सेवा को समर्पित कर पाया।
लेकिन वर्तमान मानव समाज इतना जटिल है कि इसमें कोई भाव या भावना बहुत अधिक समय तक निश्चिंतता से निर्मल बनी रहे यह होता ही नहीं। बड़े प्रयास करने पड़ते हैं तब जाकर कोई एक संकल्प भी पूरा हो पाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में तो चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को कई विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सीमित संसाधनों और क्षमता के कारण एक ओर तो सभी को संतुष्ट कर पाना संभव नहीं हो पाता, दूसरी ओर रोगियों और उनके परिजनों की भावुकता भी चरम पर होती है परिणामस्वरूप चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को कभी-कभी उनके कटु वचन और आरोपों से भी गुजरना पड़ता है, फिर इस बात को भी सभी को स्वीकारना ही पड़ता है कि त्रुटियों की संभावना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सदैव बनी रहती है।
वे चिकित्सक तथा स्वास्थ्य कर्मी जो योग्यता तथा अनुभव की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में नैतिकता से विचलित हो जाते हैं, गंभीर गलतियाँ कर बैठते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि उन कुछ लोगों के द्वारा किए गए कार्यों से ‘उपचार सेवा’ ही कलंकित हो जाती है, कारण यह कि वे यह भूल चुके होते हैं कि चिकित्सा का क्षेत्र योग्यता और सेवा-भावना का वह क्षेत्र है जिसमें त्रुटियों को तो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन नैतिकता और कर्तव्य बोध की लापरवाहियों को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता।
चाहे रोगी हो, या स्वस्थ स्वास्थ्य कर्मी अथवा चिकित्सक, अपने-अपने जीवन में किसी ना किसी स्तर पर सभी के सामने चुनौतियाँ आती रहती हैं। प्रत्येक प्राणी के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बन गए इस संघर्ष से प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रयासों के द्वारा निपटता है और जब-जब उसे लगता है कि वह इस संघर्ष में कमजोर पड़ रहा है तब-तब उसका ध्यान किसी से मिल सकने वाली सहायता की ओर जाता है। आशावान होकर वह मदद माँगता है, वह इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव करता है कि प्रार्थना का भी अपना महत्व है।
सहायता की भोली पुकार में बड़े से बड़े निष्ठुर व्यक्ति को भी द्रवित कर देने की शक्ति होती है। आपने भी अपने जीवन में कभी ना कभी यह अनुभव किया होगा कि किसी असहाय की सहायता करके मन को कितनी शांति और तृप्तता की अनुभूति होती है! तब क्या आपने यह विचार किया कि किसी असहाय की सहायता करके मन को यह संतोष क्यों मिलता है? कई-कई कर्मयोगी और समाजसेवी तो अपना सारा जीवन ही इस तृप्तता की अनुभूति के लिए समर्पित कर देते हैं। सेवा से संतोष मिलता है यह सिद्ध कर देने वाले सेवाप्रेमी चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को मुझ अल्पज्ञानी का बार-बार प्रणाम!
जब कोई चिकित्सक या स्वास्थ्य कर्मी उपचार सेवा की विधि और रोगी के स्वास्थ्य लाभ की भावना से लगन लगा बैठता है तब वह सेवा के संतोष का सच्चा अनुभव कर लेता है। उसे यह तो संतोष होता ही है कि उसका उपचार कौशल सिद्ध हो गया साथ ही उसे रोगी को रोगमुक्त होता देख कर जो सुख मिलता है वह उसकी सेवा भावना को धन्य कर देता है। सेवा प्रेम में वह उपचार की विधि से भी उतना ही प्रेम करता है जितना रोगी को मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ से।
कष्टहर औषधि सुलभ मैं मोहिनी संताप की मैं प्राण में नवतेज का संचार हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं कष्टों को हर लेने वाली वह औषधि हूँ जो सुगमता से प्राप्त हो जाती है, मैं मन की पीड़ा को मोहित कर लेने वाली वह मोहिनी हूँ जो पीड़ा का प्रभाव मन पर नहीं पड़ने देती, मैं प्राण में नये तेज का संचार हूँ।
कठिनाइयों से युक्त पथ पर
सारथी तत्पर हूँ रथ पर
दायित्व का निर्वाह हूँ
मैं प्रेम हूँ
-II मैं प्रेम हूँ IIप्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं जीवन की कठिनाइयों से जूझते पथिक को आगे ले जाने वाला कर्तव्य में तत्पर हुआ सारथी हूँ, मैं व्यक्ति को उसके दायित्व का निर्वाह करने की प्रेरणा और लगन देता हूँ, मैं कर्तव्य का बोध हूँ।
एक ओर तो चिकित्सक तथा स्वास्थ्य कर्मी की सेवा भावना के लिए रोगी की सेवा भी ईश्वर की सेवा का रूप होती है वहीं दूसरी ओर रोग से जूझते रोगी के लिए चिकित्सक तथा स्वास्थ्य कर्मी के प्रयास भी ईश्वर की कृपा का ही रूप होते हैं।
वैद्यराज प्रेमी कहो औषधि प्रेम दुलार ईश्वर भी पाए जिसे बन कर के बीमार -II प्रेमसारावली II
सभी वैद्यों में सबसे बड़ा वैद्य वही है जो प्रेमी है। प्रेम-दुलार ऐसी श्रेष्ठ औषधि है कि जिसको पाने के लिए भगवान भी रोगी का रूप धर लेता है।
मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि प्रत्येक मानव को प्रेम का ऐसा अनुभव दे कि उसे समय रहते प्रेम का महत्व समझ में आ जाए, मानव जीवन प्रेममय हो जाए I
सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!